कथा के अनुसार हनुमानजी ने गुफा के बाहर भैरवनाथ से युद्ध किया लेकिन जब वे निढाल होने लगे तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 कि. मी. दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। उस स्थान को भैरोनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है।कहा जाता हैं क्षमा मांगने पर माता ने भैरवनाथ को ऊंचा स्थान प्रदान किया और कहा कि ‘जो कोई भी मेरे दर्शन करने यहा आएगा, वह मेरे बाद तुम्हारे दर्शन भी जरूर करेगा अन्यथा उसकी यात्रा पूरी नहीं कहलाएगी। यही कारण है कि आज भी लोग माता के दर्शन के बाद बाबा भैरवनाथ के मंदिर जरूर जाते हैं।
भैरवनाथ को मोक्ष दान देने के बाद वैष्णो देवी ने तीन पिंड सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं। इस बीच पंडित श्रीधर भी अधीर हो गए। उन्हें सपने में त्रिकुटा पर्वत दिखाई दिया और साथ ही माता की तीन पिंडियां मिलने पर उन्होंने सारी ज़िंदगी विधिपूर्वक उन ‘पिंडों’ की पूजा की। उनसे प्रसन्न होकर देवी उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। तब से श्रीधर और उनके वंशज ही देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं।