विनती
तन से मन से और बुधि से
हम बहुत बड़े हो,पर्वत से हो सिर उचा कर
सीना तान खड़े हो,
कोई काम हो भारी हम करके दिखला दे
आँधी से हो,मुसीबत को बादल-सा बिखरा दे
मुट्ठी में तक़दीर बांधे हसकर चलने वाले
अधियारे में किसी –दिये की लौ –से जलने वाले
प्यासे को देखे तो हम सम सावन से घिर आए
सागर में ही नही हथेली गागर में भर जाए