तेनालीराम के बाग की सिंचाई

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तेनालीराम के बाग की सिंचाई हिंदी कहानी

इस कहानी में आप पढ़ेंगे कि किस तरह चतुरों के चतुर तेनालीरामन  ने अपनी चतुराई से बिना एक पैसा खर्च किये चोरों से ही अपने बाग़ की सिंचाई करा ली।

एक बार विजयनगर में भीषण गर्मी के कारण सूखे की स्थिति पैदा हो गई। राज्य की नदियों -तालाबों का जलस्तर घट जाने के कारण पानी की विकट समस्या खड़ी हो गई। सूखे के कारण नगर के सभी बाग़ – बगीचे भी सूखने लगे।

तेनालीराम ने अपने घर के पिछवाड़े एक बाग लगवाया था।  वह बाग भी धीरे -धीरे सूखता जा रहा था। उस बाग के बीचो-बीच एक कुआं था , लेकिन उसका भी जलस्तर नीचे चला गया था। परिणामस्वरूप बाग की सिंचाई के लिए कूऐँ से पानी निकलना काफी कठिन था। यदि कुँए के पानी से बाग की सिंचाई कराने के लिए मजदूर भी लगाए जाते तो उसमे काफी धन खर्च होता।

एक शाम को बाग में टहलते हुए तेनालीराम अपने बेटे से इसी विषय में बात कर रहा था  कि मजदूरों से सिंचाई करवाएं या नहीं। अचानक उसकी दृस्टि बाग़ की दीवार की दूसरी ओर छिपे तीन -चार व्यक्तियों पर पड़ी। वे सभी उसी के मकान की ओर देख रहे थे और संकेतो में एक -दूसरे को कुछ कह रहे थे।

तेनालीराम तुरंत भांप गया कि ये सेंधमार चोर हैं जो चोरी करने के लिए उसी के घर की तरफ आने वाले है उसने अपनी दर्ष्टि उन पर से  हटाई और सबकुछ अनदेखा करने का नाटक किया। साथ ही उनको सुनाने के लिए ऊंचे स्वर में कहा ,”बेटे! सूखे के दिन है। आजकल चोरी-डैकेती बहुत होती है। वह संदूक जिसमे मैंने अपने जीवनभर की कमाई रखी है उसे घर में रखना ठीक नहीं। क्या मालूम कब चोरी हो जाये। चलो इस संदूक को उस कुऍं में डाल दे। ताकि कोई उसे चुरा ना सके। कोई यह सोच भी नहीं पायेगा कि हमने संदूक कुए में छिपाया होगा। इतना कहकर वह अपने लड़के के साथ घर के अंदर चला गया और बोला “अब हमें बाग की सिंचाई के लिए मजदूर लगाने की  आवश्यक्ता नहीं है। तुम देखते जाओ सुबह तुम्हे बाग की सिंचाई हुई मिलेगी। हाँ, इससे पहले हमें एक काम करना है। “

यह कहकर वो संदूक में कंकड़ -पत्थर  भरने लगे। जब संदूक काफी वजनी हो गया तब दोनों ने मिलकर उसे उठाया और कुऍं में फेंक दिया फिर तेनालीराम ऊचें स्वर में बोला , “बेटा अब हम चैन से सो सकते हैं। हमारा धन अब बिल्कुल सुरक्षित है।”

तेनालीराम की बात सुनकर दीवार के पीछे छिपे चोर मन-ही-मन खुश हो रहे थे। वह बोले कि लोग बेकार में ही तेनालीराम को चतुर कहते हैं, यह तो सबसे बड़ा महामूर्ख है। जब तेनालीराम अपने बेटे के साथ वहां से चला गया तो चोरों का मुखिया बोला, “चलो अब अपना काम शुरू करते हैं। आज इस मूर्ख का खजाना हमारे कब्जे में होगा। ”

इसके बाद चोर कुऍं की तरफ बढ़ गए। उन्होंने कुऍं के पास रखी बाल्टियां और रस्से उठाये और काम में जूट गए। कुऐं में पानी का जलस्तर कम था, परन्तु फिर भी संदूक पानी में पूरी तरह डूब चूका था। अँधेरे में संदूक को तभी देखा जा सकता था। जब कुऍं का बहुत-सा पानी बाहर निकाला जाता। चोर बाल्टी भर-भरकर कुऍं से पानी बाहर निकालते और बाहर बाग में उड़ेल देते। सारी रात चोर पानी निकालते रहे। तेनालीराम और उसका पुत्र भी उनसे कुछ दूरी पर पेड़ों की ओट में खुरपी से क्यारियों की नालियां बनाने लगे। चोरों द्वारा उड़ेला गया पानी नालियों से क्यारियों में पहुँचता हुआ सिंचाई कर रहा था। भोर होने ही वाली थी कि चोरों को संदूक का एक कोना दिखाई दिया। उन्होंने काँटा डालकर संदूक को बाहर खींच लिया।

अब सभी चोर संदूक के इर्द-गिर्द घेरा डालकर खड़े हो गए। जब उन्होंने संदूक को खोलकर देखा तो कंकड़-पत्थर देखकर उनके पैरों तले जमीन खिसक गयी। यह तो वही बात हो गई कि खोदा पहाड़ और निकली चूहिया।

वे मूर्ख तो बन ही चुके थे, लेकिन अब पकड़े जाना नहीं चाहते थे। वे जल्द ही सिर पर पैर रखकर वहां से भाग निकले।

सुबह दरबार में तेनालीराम ने जब यह घटना महाराज को सुनाई तो वें खूब हँसे और कहने लगे, ”कभी-कभी ऐसा भी होता है। बोता कोई है और काटता कोई और है। “

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