नवग्रह मंडल में भी कुछ ग्रहों में आपस में पिता-पुत्र संबंध हैं जो कि व्यक्ति की जन्मपत्रिका को भी प्रभावित करते हैं। यह पिता-पुत्र सूर्य एवं शनि हैं। इनके वैर को इस प्रकार समझा जा सकता है कि सूर्य जहां मेष राशि में उच्च के होते हैं वहीं शनि मेष में नीच के होते हैं। सूर्य तुला में नीच के होते हैं तो शनि तुला में उच्च के होते हैं। यदि दोनों एक साथ किसी एक ही राशि में बैठ जाएं तो पिता-पुत्र का परस्पर विरोध रहता है या एक साथ टिकना मुश्किल हो जाता है।
कथाओं के अनुसार त्वष्टा की पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्यदेव के साथ हुआ था। विवाह के पश्चात् यम और यमी का जन्म हुआ इनके जन्म के बाद भी संज्ञा सूर्य के तेज को सहन नहीं कर सकीं और अपनी छाया को सूर्य देव के पास छो़डकर चली गई।
सूर्य ने छाया को अपनी पत्नी समझा और उनसे , मनु, शनि, तपती तथा भद्रा का जन्म हुआ। जन्म के पश्चात जब शनि को सूर्य ने देखा और क्रोध में बोले इतना कुरूप मेरा पुत्र नही हो सकता ,तो सूर्य को उसी क्षण कोढ़ हो गया। सूर्य को जब संज्ञा एवं छाया के भेद का पता चला तो वे संज्ञा के पास चले गए।
सूर्य पुत्र शनि का अपने पिता से वैर है।जिसका असर मनुष्य की कुंडली पर भी पड़ता है ज्योतिष शास्त्र में फलादेश करते समय भी इस तथ्य का ध्यान रखा जाता है। । सूर्य के परम मित्र चन्द्रमा से शनि का वैर है और शनि की राशि में सूर्य जीवन में कुछ कष्ट अवश्य देते हैं परन्तु जैसे सोना तपकर निखरता है वैसे ही सूर्य-शनि की यह स्थिति भी कष्टों के बाद जीवन में सफलता लाती है।
सूर्य आध्यात्मिक प्रवृत्ति के हैं तथा शनिदेव आध्यात्म के कारक हैं, अत: जन्मपत्रिका में सूर्य एवं शनि की युति व्यक्ति को धर्म एवं आध्यात्म की ओर उन्मुख करती है।