सुनेहरी नारंगी

सुनेहरी नारंगी (  )
golden orange

बहुत समय पहले वीर प्रताप नाम के एक राजा राज्य करते थे। वो बहुत ही दयालु थे और जरूरतमंद लोगों की मदद करते रहते थे। किसी की धन देकर तो किसी की अन्न देकर। इसलिए कोई ना कोई राजा के पास मदद के लिया आता रहता था और इतना ही नही जो लोग राजा से मदद मांगने आते थे वो अपना काम पूरा होने पर राजा को शुक्रिया करने भी आया करते थे। जिसे सुनकर राजा बहुत ही प्रसन्न हो जाते थे क्योंकि उन्हें अपने राज्य के सभी लोगों को खुश देखकर बहुत खुशी मिलती थी। लेकिन कहीं ना कहीं राजा का मन अपने भाई के लिए उदास था।

राजा का वीर शक्ति नाम का एक दूर का भाई था। वह बहुत गरीब था जिसकी वजह से राजा बहुत उदास रहते थे। उन्होंने कई बार उसकी मदद की लेकिन वह मौके का फायदा नही उठा पाता था। राजा जब भी उसे रुपए देकर उसकी मदद करते तो वह उन रुपयों को या तो खो देता या चोर उसके घर से उन्हें चोरी कर के ले जाता।

वीर शक्ति शिकार करने में माहिर था और उसे कविताएँ लिखने का भी बहुत शौक था। राजा को भी कविता सुनना अच्छा लगता था इसलिए वीर शक्ति कभी – कभी अपनी लिखी कविता राजा को सुना दिया करता था। जिसे सुनकर राजा उसे इनाम दे दिया करते थे लेकिन वह उस इनाम को कभी भी संभल कर नही रख पाया और ना ही कभी किसी काम में ला पाया जिसकी वजह से वह गरीब का गरीब ही रह गया।

एक दिन वीर शक्ति बहुत से जानवरों का शिकार करके दरबार में आया जिससे राजा बहुत खुश हुए और उसे इनाम देने का निर्णय किया लेकिन इस बार राजा ने उसे भरे दरबार में उसकी बहादुरी की बात बताते हुए सम्मानित किया और कहा , “आप सभी लोग मेरे भाई को भली – भांति जानते हैं। आज उसने जिस बहादुरी का परिचय दिया है , वह प्रशंसनीय हैं इसलिए मैं उसे इनाम देना चाहता हूँ ।”

इतना कहकर राजा ने एक सुनेहरी नारंगी अपने भाई को दे दी। पूरा दरबार तालियों की आवाज़ से गूंज उठा। वीर शक्ति ने सभी का अभिवादन स्वीकार किया और वह नारंगी लेकर वहाँ से चला गया। दरबार में उपस्थित सभी लोग राजा के बारे में तरह – तरह की बात करने लगे। उन्हे लगता था कि राजा अपने गरीब भाई का मजाक उड़ाना चाहते हैं तभी तो कोई बहुमूल्य उपहार देने की जगह एक साधारण सी नारंगी इनाम में दे दी। राजा ने भी लोगों की बातें सुनी लेकिन उन्होंने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया क्योकि जिस नारंगी को वो लोग साधारण समझ रहे थे असल में उस नारंगी में बहुमूल्य रत्न भरे हुए थे।

वीर शक्ति भी जाते – जाते उस नारंगी के बारे में सोच रहा था लेकिन उसे ख़ुशी थी की उसके भाई ने भरे दरबार में उसकी प्रशंसा की उसके लिया ये ही काफी हैं। और उसे साधारण नारंगी समझ कर अपने थैले में डाल लिया।

आगे चलते-चलते उसे रास्ते में एक भिक्षु मिला। उसने अपना कटोरा आगे बढ़ाते हुए वीर शक्ति से कुछ खाने को माँगा लेकिन वीर शक्ति के पास उसे देने के लिए बस वो नारंगी ही थी। इसलिए उसने वह नारंगी उसे दे दी। भिक्षु को वो सुनेहरी नारंगी बहुत ही भारी और आकर्षक लग रही थी। भिक्षु ने उसे खाने की बजाएं उस नारंगी को राजा को देने का मन बनाया और वह उस नारंगी को लेकर राजमहल में पहुँच गया। राजा वीर प्रताप की उदारता के बारे में सभी जानते थे इसलिए भिक्षु को सीधे राजा के पास भेज दिया गया। राजा ने भिक्षु का आदर – सत्कार के साथ बैठाया। भिक्षु ने सुनेहरी नारंगी राजा को देते हुए कहा , “महाराज इस नारंगी को आप मुझ जैसे निर्धन व्यक्ति की तरफ से उपहार के तौर पर स्वीकार करें और इसे मेरी तरफ से मेरा आशीर्वाद समझकर ग्रहण करें।”

राजा नारंगी को देखकर समझ गए कि यह वही नारंगी हैं जो उन्होंने उपहारस्वरुप अपने भाई को दी थी लेकिन राजा ने उसे अपने पास रखकर भिक्षु को दक्षिणा देकर विदा कर दिया। इस बार भी उनका भाई भाग्यहीन निकला और रत्नों से भरी नारंगी को साधारण समझकर भिक्षु को दे दिया। भिक्षु ने उसका महत्व समझा और उसे राजा को ही दे दिया।

एक बार दरबार में राजकीय शिकार की घोषणा हुई। शिकार में जाने वाले दल में वीर शक्ति ने भी हिस्सा लिया और वह उसमे अव्वल आया। इस बार भी राजा ने वीर शक्ति को वही सुनेहरी नारंगी दोबारा पुरस्कार में दे दी।

वीर शक्ति ने सोचा कि यह नारंगी उस नारंगी से कुछ अलग होगी, ऐसा सोचकर उसने सुनेहरी नारंगी थैले में डाली और घर के लिए चल पड़ा लेकिन जैसे ही वह महल के द्वार पर पहुंचा तो उसे एक दरबारी पान खाता हुआ दिखाई दिया ।उसे देखकर उसका भी मन पान खाने के लिए बेचैन हो उठा और उसने वह नारंगी उस दरबारी को देकर एक पान ले लिया और उसे अपने मुँह में डालकर चल दिया।

उधर दरबारी ने सोचा यह नारंगी उसके किस काम की ।अत: उसने वह वापस राजा को ही लौटा दी और बोला , “ महाराज आप ने यह नारंगी अपने भाई को दी थी लेकिन उन्होंने एक पान के बदले यह हमें दे दी। ऐसे इंसान की मदद करने से क्या फ़ायेदा। वो ज़िन्दगी में कभी सफल नही हो सकते क्योकि उन्हें किसी के दिए हुए पुरस्कार की कोई अहमियत नही हैं।”

इस घटना के कुछ ही दिन बाद दोबारा राजकीय शिकार का आयोजन हुआ और पहले की तरह इस बार भी वीर शक्ति अव्वल आया और इस बार राजा वीर प्रताप ने नारंगी पुरस्कार में देते हुए अपने भाई से कहा , “ मैं ये नारंगी तुम्हें तीसरी और आखिरी बार इनाम में दे रहा हूँ इसके बाद तुम्हें यह कभी नही मिलेगी ।”

इस बार जैसे ही वीर शक्ति ने नारंगी महाराज के हाथ से ली वह उसके हाथ से छूट कर नीचे गिर गई और उसमें से बहुमूल्य रत्न बिखर गए। अफ़सोस व्यक्त करते हुए वीर शक्ति ने महाराज से क्षमा माँगी और रत्नों को उठाने लगा। इतने सारे रत्नों को देखकर वह आश्चर्य के साथ महारज की ओर देखने लगा। महाराज मंद- मंद मुस्कुरा रहे थे। उन्होंने वीर शक्ति से कहा , “मैंने कितनी बार तुम्हारी मदद करने की कोशिश की लेकिन तुमने हर बार मेरी कोशिशों पर पानी फेर दिया परन्तु इस बार तुम इस नारंगी को पाकर सुखी से रहने लगोगे ।” वीर शक्ति भी बहुत खुश हो गया और महाराज की अपने भाई  के प्रति चिंता भी ख़त्म हो गयी।

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