ऋषि पंचमी व्रत क्यों मनाई जाती है
यह व्रत भाद्र पद के माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी के रूप में मनाया जाता है|यह व्रत सभी के लिए फलदाई है |इस दिन व्रत रखना तथा कथा सुनना बहुत महत्व रखता है|यह व्रत ऋषियों के प्रति श्रधा ,कृतज्ञता ,समर्पण एवं सम्मान की भावना को प्रदर्शित करने का महत्वपूर्ण आधार है|
तो आइये जाने इसकी कथा क्या है
एक समय विदर्भ देश में उत्तक नाम का ब्राह्मण पत्नी के साथ रहता था|परिवार में एक पुत्र व एक पुत्री थी ,वह पुत्री का विवाह अच्छे लडके से कर देता है,परन्तु कन्या का पति अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाता है और वह विधवा हो जाती है|इसके बाद वह पिता के घर लौट आती है|एक दिन आधी रात में लड़की के शरीर में कीड़े उत्पन्न होने लगते है|यह देखकर माता पिता परेशान हो जाते है|पुत्री को लेकर उत्तक ऋषि के पास जाते है और उसकी इस हालत के विषय में जानने का प्रयास करते है|उत्तक ऋषि अपने ज्ञान से उस कन्या के पूर्व जन्म का माता पिता को बताते है|और कहते है यह कन्या पूर्व जन्म में ब्राह्मणी थी|
और धर्म-कर्म के कार्यो में त्रुटि का उसे इस जन्म में दंड भोगना पड रहा है|ऋषि कहते है की यदि यह कन्या ऋषि पंचमी का व्रत करे और श्रधा भाव के साथ पूजा व क्षमा प्राथना करे तो उसे पापो से मुक्ति मिल जाएगी ,इस प्रकार कन्या पंचमी का व्रत करती है,और पापो से मुक्ति पाती है|
पूजा विधि पूर्व काल में यह व्रत सभी वर्णों के पुरषों के लिए बतया गया था,किन्तु समय के साथ- साथ अब यह स्त्रियों द्वारा किया जाता है|
इस दिन पवित्र नदियो में स्नान का बहुत महत्व है|सप्त ऋषियों की प्रतिमा को स्थापित करके उन्हें पंचामृत से स्नान कराना चाहिए इसके बाद उन पर चन्दन का लेप लगाना चाहिए फूलो व सुगन्धित पदार्थो ,धुप ,दीप,इत्यादि अर्पण करने चाहिए व श्वेत वस्त्रो और निवेध से पूजा कर मंत्र जाप करना चाहिए