मदारीलाल ने मुस्करा कर कहा—वह तो आप लोगों को दो-चार दिन ही में मालूम हो जाएगा। मै अपने मुँह से किसी की क्यों शिकायत करूँ? बस, चेतावनी देदी कि जरा हाथ-पॉँव सँभाल कर रहिएगा। आदमी योग्य है, पर बड़ा ही क्रोधी, बड़ा दम्भी। गुस्सा तो उसकी नाक पर रहता है। खुद हजारों हजम कर जाय और डकार तक न ले पर क्या मजाल कि कोइ माहत एक कौड़ी भी हजम करने जाये। ऐसे आदमी से ईश्वर ही बचाये! में तो सोच राह हूँ कि छुट्टी लेकर घर चला जाऊँ। दोनों वक्त घर पर हाजिरी बजानी होगी। आप लोग आज से सरकार के नौकर नहीं, सेक्रटरी साहब के नौकर हैं। कोई उनके लड़के को पढ़ायेगा। कोई बाजार से सौदा-सुलुफ लायेगा और कोई उन्हें अखबार सुनायेगा। ओर चपरासियों के तो शायद दफ्तर में दर्शन ही न हों।
इस प्रकार सारे दफ्तर को सुबोधचन्द्र की तरफ से भड़का कर मदारीलाल ने अपना कलेजा ठंडा किया।
इसके एक सप्ताह बाद सुबोधचन्द्र गाड़ी से उतरे, तब स्टेशन पर दफ्तर के सब कर्मचारियों को हाजिर पाया। सब उनका स्वागत करने आये थे। मदारीलाल को देखते ही सुबोध लपक कर उनके गले से लिपट गये और बोले—तुम खूब मिले भाई। यहॉँ कैसे आये? ओह! आज एक युग के बाद भेंट हुई!
मदारीलाल बोले—यहॉँ जिला-बोर्ड़ के दफ्तर में हेड क्लर्क हूँ। आप तो कुशल से है?
सुबोध—अजी, मेरी न पूछो। बसरा, फ्रांस, मिश्र और न-जाने कहॉं-कहॉँ मारा-मारा फिरा। तुम दफ्तर में हो, यह बहुत ही अच्छा हुआ। मेरी तो समझ ही मे न आता था कि कैसे काम चलेगा। मैं तो बिलकुल कोरा हूँ मगर जहॉँ जाता हूँ, मेरा सौभाग्य ही मेरे साथ जाता है। बस वहा मेंरे सभी अफसर खूश थे। फांस में भी खूब चैन किये। दो साल में कोई पचीस हजार रूपये बना लाया और सब उड़ा दिया। वापस आकर कुछ दिनों दफ्तर में मटरगश्त करता रहा। यहॉँ आया तब तुम मिल गये। (क्लर्को को देख कर) ये लोग कौन हैं?
मदारीलाल के हृदय में बछिंया-सी चल रही थीं। दुष्ट पचीस हजार रूपये बसरे में कमा लाया! यहॉँ कलम घिसते-घिसते मर गये और पाँच सौ भी न जमा कर सके। बोले—कर्मचारी हें। सलाम करने आये है।
सबोध ने उन सब लोगों से बारी-बारी से हाथ मिलाया और बोला—आप लोगों ने व्यर्थ यह कष्ट किया। बहुत आभारी हूँ। मुझे आशा हे कि आप सब सज्जनों को मुझसे कोई शिकायत न होगी। मुझे अपना अफसर नहीं, अपना भाई समझिए। आप सब लोग मिल कर इस तरह काम कीजिए कि बोर्ड की नेकनामी हो और मैं भी सुखर्रू रहूँ। आपके हेड क्लर्क साहब तो मेरे पुराने मित्र और लँगोटिया यार है।
एक वाकचतुर क्लक्र ने कहा—हम सब हुजूर के ताबेदार हैं। यथाशक्ति आपको असंतुष्ट न करेंगे लेकिन आदमी ही है, अगर कोई भूल हो भी जाय, तो हुजूर उसे क्षमा करेंगे।