बहुत समय पहले की बात है एक शहर में बहुत अमिर सेठ रहता था। वह बहुत अत्यधिक धनि था जिसके वाबजूद भी वह हमेशा दुःखी ही रहता था। एक दिन ज्यादा परेशान होकर वह एक ऋषि के पास गया और अपनी सारी समस्या ऋषि को बताई।
उन्होंने सेठ की बात ध्यान से सुनी और सेठ से कहा की कल तुम इसी वक्त फिर से मेरे पास आना मैं कल ही तुम्हें तुम्हारी सारी समस्याओं का हल बता दूंगा। सेठ खुशी-खुशी अपने घर चला गया और अगले दिन जब फिर से वह ऋषि के पास आया तो उसने देखा की ऋषि सड़क पर कुछ ढूंढने में व्यस्त है।
सेठ ने तब उनसे पूछा की ,गुरु जी आप क्या ढूढ़ रहे हो ? गुरु जी बोले मेरी एक हीरे की अंगूठी गिर गई हैं में वही ढूढ़ रहा हूँ। यह सुनकर सेठ भी ढूढ़ने में लग गया। जब काफी देर तक भी अंगूठी ढूढ़ने पर भी नहीं मिली तो सेठ ने फिर पूछा कि आपकी अंगूठी कहाँ पर गिरी थीं ?
उन्होंने जबाब दीया की अंगूठी मेरे आश्रम में गिरी थीं पर वहां काफी अंधेरा है इसलिए यहाँ ढूढ़ रहा हूँ। सेठ ने चौंकते हुएं कहाँ कि जब अंगूठी वहा गिरी है तो आप यहा क्यों ढूढ़ रहे हो? गुरु जी ने मुश्कुराते हुएं कहा कि यही तुम्हारें कल के प्रश्न का उत्तर है।
खुशी तो मन में छुपी है लेकिन तुम उसे धन में खोजने की कोशिश कर रहे हो। इसलिए तुम दुःखी हो,यह सुनकर सेठ गुरु जी के पैरों पर गिर गया।
इस कहानी से यही सीख मिलती हैं कि जीवन भर हम पैसा जमा करने में लग जाते हैं तो भी हम खुश नही रहते क्योंकि हम पैसा कमाने में इतने मग्न हो जाते हैं कि अपनी खुशी आदि को भूल जाते हैं।