प्रकृति का ये तो नियम ही है की जो इस धरती पर आया है उसे एक न एक दिन इस धरती को त्याग कर जाना ही होगा और यही नियम भगवान राम पर भी लागु होती है क्योकि त्रेयायुग में उन्होंने मनुष्य रूप में जन्म लिया था
जब भगवान राम के पृथ्वी पर आने का लक्ष्य पूरा हो चुका था तब उन्होंने इस प्रकृति के नियम को अपनाने का निश्चय किया ।
लेकिन यमराज जी तब तक श्रीराम को मृत्यु लोक से नही ले जा सकते थे जब तक हनुमान उनके साथ हो । तो यमराज ने अपनी यह दुविधा भगवान श्रीराम को बताई यह सुनकर राम ने एक उपाय किया।
भगवान श्रीराम ने यमराज़ की दुविधा को दूर करते हुए कहा की वह अपनी अंगूठी एक छिद्र में गिरा देंगे और हनुमानजी को उसे ढूंढने भेज देंगे तब आप मुझे म्रत्यु लोक से ले जाना ।
फिर श्रीराम ने हनुमानजी से कहा की उनकी अंगूठी एक छिद्र में गिर गई है और वह अंगूठी खोजके लेके आओ | हनुमान जी तुरंत उस छिद्र में अंगूठी खोजने के लिए प्रवेश कर गए । वह छिद्र बहुत गहरा था और नीचे नागलोक तक जाता था।
हनुमानजी नागलोक पहुंच गए। वहां उनकी भेंट नागों के राजा वासुकी से हुई। नागलोक में अंगूठियों का ढेर लगा था। वासुकी ने कहा कि आप इस ढेर में से भगवान की अंगूठी ढूंढ़ लें।
हनुमानजी अंगूठी ढूंढऩे लगे। वहां राम शब्द लिखी अनेक अंगूठियां थीं वे हर अंगूठी को बहुत गौर से देखने लगे। वे सभी अंगूठियां एक जैसी थीं। पर अंत में हनुमानजी इसका रहस्य समझ गए थे और उनको ज्ञात हो गया था की राम जी अपने प्राण त्यागने वाले है ।
वहा भगवान राम और अयोध्या वासी बाकी सभी वानर भी इस मृत्यु लोक को त्यागने का निश्चय कर लेते है और वे सभी सरियु नदी के जल में विलीन हो जाते है ।
इस तरह हुई थी भगवान राम की मृत्यु