राजगुरु की चाल

तेनालीरामन की ईमानदारी का पुरस्कार
तेनालीरामन की ईमानदारी का पुरस्कार

तेनालीराम से चिढ़ने वाले कुछ ब्राह्मण एक दिन राजगुरु के पास पहुंचे। क्योंकि वे सभी अच्छी तरह जानते थे कि राजगुरु तेनालीराम का पक्का विरोधी है और तेनाली से बदला लेने में वो उनकी मदद जरूर करेंगे।

राजगुरु और ब्राह्मणों ने मिलकर सोचा क्यों न तेनालीराम को अपना शिष्य बनाने का बहाना किया जाएं। शिष्य बनाने के नियमानुसार तेनालीराम के शरीर को दागा जाएगा और इस  प्रकार हमारा बदला भी पूरा हो जाएगा। फिर राजगुरु उसे निम्न कोटि का ब्राह्मण बताकर अपना शिष्य बनाने से इंकार कर देंगे।

अगले ही दिन राजगुरु ने तेनालीराम को अपना शिष्य बनाने की बात बताने के लिए उसे अपने घर बुलवाया।

चतुर तेनालीराम राजगुरु की बात सुनकर तुरंत समझ गया की दाल में जरूर कुछ काला है।

आप मुझे अपना शिष्य कब बनाएंगे? तेनालीरामन ने कुछ इस अंदाज में पूछा कि राजगुरु को उस पर बिल्कुल भी शक न हो।

“इस मंगलवार को मैं तुम्हें अपना शिष्य बनाऊंगा। उस दिन तुम स्नान करके मेरे द्वारा दिए गए नए वस्त्र धारण करके मेरे पास आ जाना। उसके बाद तुम्हें सौ स्वर्ण मुद्राएँ भी दी जाएँगी। उसके बाद विधिवत तरीके से मैं तुम्हें अपना शिष्य स्वीकार कर लूँगा।” राजगुरु ने कहा।

“ठीक है। मैं उस दिन आपके घर आ जाऊंगा।” इतना कहकर तेनालीराम  अपने घर चला गया।

घर पहुंचकर उसने यही सब बातें अपनी पत्नी को बता दी। तब उसकी पत्नी बोली, “ आपको राजगुरु की ये बातें नहीं माननी चाहिए थी। क्योंकि राजगुरु बिना किसी मतलब के कभी कुछ नहीं करता। इसमें उसकी जरूर कोई न कोई चाल होगी।”

तेनालीराम – “राजगुरु को तो मैं देख लूँगा। अगर वो शेर है तो मैं सवा शेर हूँ।”

“अच्छा तो फिर आप क्या करोंगे”, पत्नी ने पूछा।

तब तेनालीराम बोला, “ कुछ दिन पहले कुछ ब्राह्मण राजगुरु के यहाँ सभा करने गए थे। जिनमें से सोमदत्त नाम के ब्राह्मण को मैं अच्छी तरह जानता हूँ। उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हैं। मैं उसे कुछ स्वर्ण मुद्राओं का लालच देकर राजगुरु के यहाँ हुई सारी बातों के बारें में पूछ लूँगा।”

अगले ही दिन तेनालीरामन सोमदत्त के यहाँ पहुँच गया। कुछ देर बात करने के बाद उसने सोमदत्त को दस स्वर्ण मुद्राएँ देते हुए कहा, “मुझे तुम्हारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं लग रही है इसलिए तुम ये मुद्राएँ रख लो और मुझे राजगुरु के घर हुई सारी बातें बता दो।”

सोमदत्त घबराते हुए बोल, “ मुझे नहीं पता।”

तब तेनालीराम ने जोर देते हुए कहा, “क्यों नहीं बता सकते आखिर तुम भी तो उस सभा में उपस्थित थे। मैं किसी को कानों-कान खबर तक नहीं होने दूंगा कि तुमने मुझे कुछ बताया है। तेनालीराम ने भरोसा दिलाया।

तब जाकर सोमदत्त ने स्वर्ण मुद्राएँ लेते हुए तेनालीराम को सभा में हुई सारी बातों से अवगत करा दिया।

समय बीता और मंगलवार का दिन आ गया। तेनालीराम सुबह जल्दी उठकर स्नान करके राजगुरु के घर की ओर चल दिया।

राजगुरु के घर पहुँचने पर उसने राजगुरु द्वारा दिए गए सुंदर वस्त्र धारण  कर लिए। इसके बाद राजगुरु ने उसे सौ स्वर्ण मुद्राएँ देकर बैठने के लिए कहा। क्योंकि नियम के अनुसार अब तेनालीराम को शंख और लौह चक्र से दागा जाना था। इसलिए उन्हें आग में तपाया जा रहा था।  जैसे ही वे पूरी तरह तप गए तभी तेनालीराम पचास स्वर्ण मुद्राएँ राजगुरु की ओर फेंकते हुए बोला, “ आधी ही बहुत है, आधी आप वापस रख लीजिए।” इतना कहकर तेनाली वहाँ से भाग गया।

अब राजगुरु और ब्राह्मण भी तपे हुए शंख और लौह चक्र लेकर तेनालीरामन के पीछे-पीछे दौड़ने लगे। यह नजारा देखने के लिए रस्ते में काफी भीड़ इकठ्ठी हो चुकी थी।

तेनालीराम भागते-भागते महाराज के पास पहुँच गया और बोला, “महाराज! न्याय करें। दरअसल मुझे राजगुरु का शिष्य बनाया जा रहा था कि मुझे अचानक याद आया कि मैं उनका शिष्य नहीं बन सकता क्योंकि मैं तो निम्न कोटि का ब्राह्मण हूँ। वैदिकी ब्राह्मण ही राजगुरु का शिष्य बन सकता है। इसलिए आधी विधि होने के कारण मैंने पचास स्वर्ण मुद्राएँ रख ली और पचास स्वर्ण मुद्राएँ राजगुरु को वापस दे दी। फिर भी वे मुझे दगवाने के लिए मेरे पीछे आ रहे हैं।”

अब राजगुरु और सभी ब्राह्मण भी वहाँ आ पहुंचे तो महाराज के पूछने पर राजगुरु को स्वीकारना पड़ा की तेनालीराम उनका शिष्य नहीं बन सकता।

राजगुरु ने असली बात छिपाते हुए महाराज से क्षमा मांगते हुए बोले, “मैं यह भूल गया था की तेनालीराम  निम्न कोटि का ब्राह्मण है।”

तभी महाराज बोले, “तेनालीराम की ईमानदारी के लिए तो उसे इनाम मिलना चाहिए।”

इतना कहते ही महाराज ने तेनालीराम को एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ इनाम के तौर पर दे दी। बेचारे राजगुरु और ब्राह्मणों की बदला लेने की योजना तो धरी की धरी रह गई।

No Data
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes:

<a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>