प्रेरक प्रसंग: जब अर्जुन को अहंकार हो गया “वही श्रीकृष्ण के परम भक्त है..”

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प्रेरक प्रसंग: अर्जुन का अहंकार | Image Source

Lord Krishna Broke Arrogance of Arjuna Mahabharata Story: हम सभी जानते हैं कि महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ने अर्जुन का सारथी बन पुरे युद्ध में अर्जुन का मार्गदर्शन किया। जिस कारण यह धर्मयुद्ध अर्जुन और पांडवो के पक्ष में गया । इसके अलावा महाभारत की कथाओं में ऐसे अनेक प्रेरक प्रसंग है जो मानव जीवन को आज भी कल्याण की ओर ले जाते हैं।

ऐसा ही एक प्रसंग हैं जब अर्जुन को यह अहंकार हो जाता हैं कि इस संसार में वही श्री कृष्ण के परम भक्त हैं । ये बात श्री कृष्ण समझ जाते हैं और अर्जुन का अहंकार दूर करने के लिए वह अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले जाते हैं।

टहलते समय उनकी नज़र एक गरीब ब्राह्मण पर जाती हैं जो सूखी हुई घास खा रहा था। और उसकी कमर पर तलवार लटकी हुई थी। ये सब देखकर अर्जुन ने उस गरीब से पूछा, ‘ आप तो अहिंसा के पुजारी हैं जीव हिंसा के भय से सूखी हुई घास खाकर अपना गुजरा करते हैं लेकिन फिर हिंसा का यह उपकरण तलवार आपने क्यों अपने साथ रखा हैं।

-उस गरीब ब्राह्मण ने जवाब दिया ‘ मैं कुछ लोगो को दण्डित करना चाहता हूँ’

-अर्जुन ने आश्चर्य से पूछा ‘आपके शत्रु कौन हैं?’

-ब्राह्मण ने कहा, ‘मैं उन 4 लोगों को खोज रहा हूं, ताकि उनसे अपना हिसाब चुकता कर सकूं।

-सबसे पहले तो मुझे नारद की तलाश है। जो मेरे प्रभु को कभी आराम नहीं करने देते हैं, सदा भजन-कीर्तन कर उन्हें जागृत रखते हैं

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-फिर मैं द्रौपदी पर भी बहुत क्रोधित हूं। उसने मेरे प्रभु को ठीक उसी समय पुकारा, जब वह भोजन करने बैठे थे। उन्हें तत्काल भोजन छोड़ पांडवों को दुर्वासा ऋषि के श्राप से बचाने जाना पड़ा। उसकी हिम्मत तो देखिए। उसने मेरे प्रभु को जूठा खाना खिलाया।

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-‘ आपका तीसरा शत्रु कौन है?’ अर्जुन ने जिज्ञासा के साथ पूछा।

‘ वह है हृदयहीन प्रह्लाद। उस निर्दयी ने मेरे प्रभु को गरम तेल के कड़ाह में प्रविष्ट कराया, हाथी के पैरों तले कुचलवाया और अंत में खंभे से प्रकट होने के लिए विवश किया।

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और चौथा शत्रु है अर्जुन। उसकी दुष्टता तो देखिए। उसने मेरे भगवान को युद्ध में अपना सारथी ही बना लिया । उसे भगवान की असुविधा का तनिक भी ध्यान नहीं रहा। कितना कष्ट हुआ होगा मेरे प्रभु को।’ यह कहते हुए उस गरीब ब्राह्मण की आंखों से आंसू छलक पड़े।

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यह सब देख अर्जुन का अहंकार पलभर में चूर-चूर हो गया। उसने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहा, ‘मान गया प्रभु, इस संसार में न जाने आपके कितने ही अनन्य भक्त हैं। मैं तो कुछ भी नहीं हूं।’

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