परिक्रमा की विधि :
कभी भी भगवान की मूर्ति और मंदिर की परिक्रमा हमेशा दाहिने हाथ (सीधी ओर )से शुरू करना चाहिए, क्योंकि प्रतिमाओं में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर इस सकारात्मक ऊर्जा से हमारे शरीर का टकराव होता है, जिसके कारण शारीरिक ऊर्जा कम होती है। और शास्त्रों में भी बताया गया है की आरती या परिक्रमा उलटे तरफ से नही करनी चाहिए ,इससे जाने-अनजाने की गई उल्टी परिक्रमा आपको नुकसान पहुंचाती है। इसलिए धर्म से जुड़े कार्य दाहिने ओर से ही करे,परिक्रमा के दौरान मन में शुभ भावों पर ही मनन करना चाहिए। बहुत तेजी से या बहुत धीमी गति से परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। परिक्रमा पथ में सांसारिक विषयों से संबंधित बातें नहीं करनी चाहिए। पथ में पीछे की ओर लौटना, हंसी-मजाक करना या उच्च स्वर में नहीं बोलना चाहिए।परिक्रमा के दौरान अपने इष्ट देव के मंत्र का जाप करने से उसका शुभ फल मिलता है।
शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं की परिक्रमा की संख्या अलग-अलग बताई गई है।
इस मंत्र के साथ करें देव परिक्रमा
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे–पदे।।
इस श्लोक का अर्थ : जाने-अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए। परमेश्वर मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें।