उज्जैन नगरी यानि के महाकाल की नगरी यहाँ स्तिथ महाकाल ज्योतिर्लिंग शिव जी का तीसरा ज्योतिर्लिंग कहलाता है। यह एक मात्र ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी है। आज हम आपको पुराणों में वर्णित महाकाल की कथा सुनाने जा रहे हैं।
महाकाल ज्योतिर्लिंग की पुराणों में दो कहानियां वर्णित है जिसमें से एक ये हैं-
सूतजी द्वारा – शिव पुराण की ‘कोटि-रुद्र संहिता’ के सोलहवें अध्याय में भगवान महाकाल के संबंध में जिस कथा को वर्णित किया गया है उसके अनुसार…
अवंती नगरी (उज्जैन) में एक वेदप्रिय नाम के ब्राह्मण रहते थे। वह भगवान शिव के परम भक्त थे वह रोज शिवलिंग का निर्माण कर शास्त्र विधि से उनकी पूजा करते थे। अपने घर में अग्नि की स्थापना कर रोज वैदिक कर्मों में लगे रहते थे।
वेदप्रिय शिव जी के बहुत बड़े भक्त थे। उनके शिव पूजा के फलस्वरूप ही चार पुत्र हुए। उन चारों पुत्रों के नाम देवप्रिय,प्रियमेधा, संस्कृत और सुवृत थे। वह चारों भाई भी बड़े शिव भक्त थे।
एक दिन रत्नमाल नाम के पर्वत पर ‘दूषण’ नाम वाले एक असुर ने वेद, धर्म और अन्य धर्मात्माओं पर आक्रमण कर दिया। असुर को ब्रह्मा द्वारा वरदान मिला हुआ था। असुर ने अवंती नगरी (उज्जैन) में भी हमला कर दिया। लेकिन उनके भयंकर उपद्रव से भी शिव जी पर विश्वास करने वाले वे ब्राह्मण के चार पुत्र डरे नहीं। जब अवंती नगरी के रहवासी उस असुर के आतंक से घबराने लगे…
तब उन चारों शिवभक्त भाइयों ने उन्हें कहा कि – आप लोग डरे नहीं भगवान शिव पर भरोसा रखें।
इसके बाद चारों भाई शिव जी की पूजा करने लगे। असुर अपनी असुरी सेना लेकर पूजा कर रहे उन चार भाइयों के पास पहुँच गया और अपनी सेना से कहने लगा इन्हें बाँधकर मार डालो। ब्राह्मण पुत्रों ने उस असुर की बात पर ध्यान न देते हुए शिव की पूजा में लगे रहें।
जब असुर को लगा की ये ब्राह्मण के चारों पुत्र उससे डर नहीं रहे तो उसने ब्राह्मणों को मार डालने का आदेश दिया। उन्होंने जैसे ही शिव भक्तों के प्राण लेने के लिए शस्त्र उठाया तो वहा उनके द्वारा पूजित उस शिवलिंग से भयंकर रूपधारी भगवान शिव प्रकट हो गये।
शिव ने असुर से कहा- ‘अरे दुष्टों! तुझ जैसे हत्यारों के लिए ही मैं ‘महाकाल’ प्रकट हुआ हूँ।
महाकाल भगवान शिव ने अपने हुँकार से ही उन दैत्यों को भस्म कर डाला। शिव ने दूषण नामक दैत्य का वध कर दिया। उन शिवभक्त ब्राह्मणों से खुश होकर भगवान शिव ने कहा कि ‘मै महाकाल तुम चारों भाइयों से प्रसन्न हूँ, तुम मुझसे वर मांग सकते हो।
तब उन ब्राह्मणों ने हाथ जोड़कर कहा- दुष्टों को दण्ड देने वाले महाकाल शम्भो! हे भगवान शिव! प्रभो! आप अपने दर्शनार्थी मनुष्यों का सदा उद्धार करते रहें। आम जनता के कल्याण तथा उनकी रक्षा करने के लिए यहीं हमेशा के लिए विराजिए।
भगवान शिव ने उन ब्राह्माणों की प्राथना स्वीकारते हुए अपने भक्तों की सुरक्षा के लिए वही स्थापित हो गये। तब से भगवान शिव महाकालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए।