लाल बहादुर शास्त्री से जुड़े तीन अनसुने किस्से – 3 Untold Story of Lal Bahadur Shastri in Hindi

manoj kumar with lal bahadur shastri
manoj kumar with lal bahadur shastri

Untold Stories of Lal Bahadur Shastri: सादगी और सरलता की मिशाल स्वतन्त्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर सन् 1904 में उत्तर प्रदेश के मुगलसराय जिले में हुआ था। शास्त्री जी स्वतन्त्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। लाल बहादुर शास्त्री दुनिया के उन महान लोगों में शामिल किए जाते है जिन्होंने अपने सरल और साधारण व्यक्तित्व से लोगों को प्रभावित किया। एक साधारण से परिवार में जन्में शास्त्री जी ने देश के सबसे बड़े पद प्रधानमंत्री तक का सफर तय किया। एक साधारण सी कद-काठी वाले शास्त्री जी ने सार्वजनिक जीवन में श्रेष्ठता के जो प्रतिमान स्थापित किए वे बहुत ही कम देखने को मिलते है।

लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु 11 जनवरी सन् 1966 में हो हुई थी। अपनी मृत्यु से पहले वे लगभग अठारह महीने तक स्वतन्त्र भारत के प्रधानमंत्री रहे। प्रधानमंत्री रहते लाल बहादुर शास्त्री का कार्यकाल अद्वितीय रहा और उन्होंने कई नेक कार्य किए।

आज हम आपको शास्त्री जी के जीवन से ऐसे ही कुछ खास किस्सों के बारे में बताने जा रहे है जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते है। तो आइये जानते है शास्त्री जी से जुड़े तीन अनसुने किस्सों के बारे में।

लाल बहादुर शास्त्री से जुड़े तीन अनसुने किस्से –

1. राष्ट्र के सेनापति होते हुए दुकानदार से की सबसे सस्ती साड़ी की मांग-

एक बार शास्त्री जी एक दुकान में साड़ी खरीदने गए दुकान का मालिक शास्त्रीजी को देख बेहद खुश हुआ। उसने उनके आने को अपना सौभाग्य माना और स्वागत-सत्कार किया। शास्त्री जी ने कहा, वे जल्दी में हैं और उन्हें चार-पांच साड़ियां चाहिए। दुकान का मैनेजर शास्त्री जी को एक से बढ़ कर एक साडियां दिखाने लगा, साडियां काफी कीमती थी।

शास्त्री जी बोले- भाई, मुझे इतनी महंगी साडियां नही चाहिए कम कीमत वाली दिखाओ। मैनेजर ने कहा सर, आप इन्हें अपना ही समझिए, दाम की तो कोई बात ही नही है यह तो हमारा सौभाग्य है कि आप पधारे। शास्त्रीजी उसका आशय समझ गए उन्होंने कहा- मैं तो दाम देकर ही लूंगा, मैं जो तुमसे कह रहा हूं उस पर ध्यान दो और कम कीमत की साडियां ही दिखाओ और कीमत बताते जाओ। तब मैनेजर ने थोड़ी सस्ती साडियां दिखानी शुरू की। शास्त्रीजी ने कहा ये भी मेरे लिए महंगी ही है, और कम कीमत की दिखाओ।

मैनेजर एकदम सस्ती साड़ी दिखाने में संकोच कर रहा था शास्त्रीजी मैनेजर को भांप गए। उन्होंने कहा- दुकान में जो सबसे सस्ती साड़ी उनमें से दिखाओ मुझे वही चाहिए। आखिरकार मैनेजर ने उनके मन मुताबिक साडियां निकाली शास्त्रीजी ने कुछ उन सबसे सस्ती साड़ियों में से कुछ चुनी और कीमत अदा कर चले गए।

2. जब शास्त्री जी ने ट्रैन से कूलर निकलवा दिया –

ये बात उस समय की है जब शास्त्री जी रेल मंत्री हुआ करते थे। तब उन्हें एक दिन अकस्मात मुम्बई जाना पड़ गया। शास्त्री जी के जाने के लिए रेलगाड़ी में सफर करने के लिए प्रथम श्रेणी का डिब्बा तैयार किया गया। जब गाड़ी चलने लगी तो उन्हें ठंड लगी, जबकि बाहर गर्मी की हवाएं या लू चल रही थी। यह सोच के शास्त्री जी बोले डिब्बे में काफी ठंडक है लेकिन बाहर गर्मी है।

शास्त्री जी के पर्सनल असिस्टेंट जिनका नाम कैलाश बाबू था ने कहा जी सर इस डिब्बे में आपकी सुविधा हेतु कूलर लगवाया गया है। शास्त्रीजी ने तिरछी निगाह से कैलाश बाबू की तरफ देखा और आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा कूलर लगवाया गया है? वो भी बिना मुझे बताए? क्या और लोगों को गर्मी नहीं लगती होगी?

शास्त्रीजी ने आगे कहा कि लोगों का सेवन होने के कायदे से तो मुझे भी थर्ड क्लास में चलना चाहिए, किन्तु यदि ऐसा नही हो सकता है तो जितना हो सकता है उतना तो करना चाहिए। उन्होंने कहा आगे जिस भी जगह पर गाड़ी रुके सर्वप्रथम मेरी बोगी से इस कूलर को निकलवाया जाए। फिर क्या था मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकी और रुकते ही सबसे पहले कूलर निकलवाया गया।

3. जब लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय-जवान, जय-किसान’ का नारा दिया-

‘जय जवान, जय किसान’ का नारा श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने ही दिया था। आपको बता दें  कि लाल बहादुर शास्त्री जी प्रधानमंत्री होने के अलावा इलाहाबाद से दो बार सांसद भी रह चुके थे।

लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान, जय किसान’ नामक यह नारा सर्वप्रथम यमुनापार उरुवा में एक सभा संबोधित करने के दौरान दिया था।

उनका यह नारा इतना चर्चित हुआ कि बाद में हर सभा का हिस्सा बन गया। लाल बहादुर इंटर कॉलेज से रिटायर हुए शिक्षक मंगल देव द्विवेदी ने बताते हैं कि मेजा के उरुवा मैदान में भाषण के दौरान शास्त्री जी ने कई बार ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया। बाद में यह नारा देशभक्ति का प्रतीक बना। अधिकारिक तौर पर यह नारा 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा दिया गया। इस नारे को भारत के राष्ट्रीय नारे का दर्जा प्राप्त है जो भारतीय सेना के पराक्रम और त्याग के साथ ही किसानों के श्रम को दर्शाता है।

Share on