भगवान शिव इस सुंदर श्रृष्टि के निर्माण नायक है उन्होंने इंसान जानवर सबको बनाया और देवो को शक्ति दी उन्ही में से एक देव है।शनि देव जिनको कर्म फलदाता की उपाधि प्रदान की।
कथा के अनुसार :
एक समय शनि देव भगवान शिव के धाम हिमालय पहुंचे। उन्होंने भगवान शिव को प्रणाम कर उनसे पूछा हे प्रभु! आपने जो मुझे शक्ति दी है आपने जिसका मुझे बोध कराया है ।तो आप मुझे ये भी बताए की में इस शक्ति का प्रयोग कैसे करू ?तो क्या में इसका सर्वप्रथम आपके उपर इसका प्रयोग कर सकता हूँ ? तब शनिदेव की बात सुनकर भगवान शिव सोच में पड़ गए और मुस्कुरा कर बोले, “हे शनिदेव!पर आप सवा पहर तक ही मुझपर अपनी वक्र द्रष्टि रखना ।”
भगवान् शिव शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए उपाय सोचने लगे :
शनि की दृष्टि से बचने हेतु भगवान् शिव पृथ्वी पर आए। तब भगवान शिव ने शनिदेव और उनकी वक्र दृष्टि से बचने के लिए एक हाथी का रूप धारण कर लिया। भगवान शिव को कभी हाथी के रूप में तो कभी जल के अंदर समाधि भी लगानी पड़ी और सवा पहर तक का समय व्यतीत करना पड़ा जैसे ही दिन ढल गया शिव जी कैलाश लौट आए भगवान शिव को कैलाश में देख कर शनिदेव ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
शनि देव बोले,” मेरी दृष्टि से कोई नही बच सकता न तो देव बच सकते हैं और न ही दानव यहां तक की आप भी मेरी दृष्टि से बच नहीं पाए।” मेरी ही दृष्टि के कारण आपको दिन ढलने तक देव योनी को छोड़कर पशु योनी में जाना पड़ा इस प्रकार मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ ही गई।