- इस मंदिर का निर्माण एक पुजारी निरर्थ ने मछुआरों की मदद से कराया था। बाली के समुद्री देवता को समर्पित यह मंदिर बाली की पौराणिक संस्कृति का एक अभिन्न अंग है।
- सूर्यास्त के समय इस मंदिर की शोभा बढ़ जाती है ,सूर्यास्त के इस नज़ारे को देख कर मन को अलग ही शांति महसूस होती है । तथा इसके आस-पास कई तरह के जानवर पशु पक्षी भी देखने को मिल जाते है जिसमें हिरण, भालू व भेडि़ए और दुर्लभ पक्षी मौजूद हैं।
इस भव्य मंदिर को ना केवल हिन्दू बल्कि मुस्लिम भी जाते है देखने
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