पापा बाइक नहीं दिला सकते तो क्यूँ मुझे इंजीनियर बनाने के सपने देखतें हैं

Father and Son
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आज हम आपको एक बेटे और पिता के भावनाओ को लेकर कहानी सुनाने जा रहे हैं। भले कहानी आपको अच्छी लगे न लगे पर इस कहानी से आपको कुछ सीखने को तो जरुर मिलेगा। तो चलिये नीचे हमारी कहानी पढ़िये…

मुझे बाइक चाहिये थी क्योंकि मेरे सभी दोस्तों के पास थी। एक दिन बहुत गुस्से में बिना किसी को खबर किए मैं घर से चला आया। गुस्सा इतना था कि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। घर से निकलते समय गलती से अपने जूते छोड़, पापा के ही जूते पहन आया। मन में बस यही ख्याल आया की आज ही घर छोड़ चला जाऊं वापस तभी लौटू जब मैं बहुत पैसे वाला बन जाऊं।

जब पापा बाइक नहीं दिलवा सकते थे, तो क्यूँ मुझे इंजीनियर बनाने के सपने देखतें हैं। आज घर से निकलते समय मैं पापा का पर्स भी ले लाया जिसे पापा किसी को हाथ तक नहीं लगाने देते थे। मुझे पता है पापा के पर्स मैं जरुर बहुत पैसे और पैसो के हिसाब लिखे होंगे पर्स खोलकर देखूं तो जरा पापा ने कितना पैसा छुपा रखा है। माँ से भी पर्स छुपाते थे हाथ तक लगाने नहीं देते थे।

चलते-चलते तभी मुझे जूतों में कुछ चुभा मैंने तुरंत जूता निकाल कर देखा तो मेरे पैर में थोडा सा खून आ रहा था। जूते की एक कील निकली हुई  थी जो पैर में चुभ गई थी दर्द तो हुआ पर गुस्सा बहुत आ रहा था मुझे तो बस कैसे भी घर छोड़कर जाना था।

मैं वैसे ही चल दिया जैसे ही कुछ दूर चला मुझे जूते के अंदर पांवो में गिला गिला लगा देखा सड़क पर पानी भरा पड़ा था। पाँव उठा के देखा तो जूते में छेद भी था। मैं वैसे ही चलता रहा जब बस स्टॉप पहुंचा पता चला कि दो घंटे तक कोई बस नहीं हैं।

मैं वहीं बस का इंतजार करने लगा मैंने सोचा क्यों न तब तक पर्स खोलकर देखूं कि पापा ने कितने पैसे छुपा रखे है। मैंने पर्स खोला तो उसमें एक पर्ची मिली पर्ची में लिखा था लैपटॉप के लिए 30 हजार उधार लिए। फिर मैंने सोचा लैपटॉप तो घर में मेरे पास है।

उसी के साथ दूसरा एक मुड़ा हुआ पन्ना देखा, उसमे पापा ने अपने ऑफिस की किसी हॉबी डे पर अपनी हॉबी के बारे में लिखा था।
उन्होंने हॉबी में लिखा था “अच्छे जूते पहनना” तभी मेरी नजर उनके जूतों पर गई।
मुझे याद है, माँ उनकी हर तनख्वा पर कहती थी नए जूते ले लो … और वे हर बार कहते – “अभी तो 6 महीने जूते और चलेंगे ऐसा वे पिछले पांच साल से कहते आ रहे थे।

“मैं अब समझा ऐसा वो क्यों कहते थे”

उनके पर्स में एक कार्ड भी रखा था जिसमें लिखा था पुराना स्कूटर दीजिये एक्सचेंज में नयी बाइक ले जाइये ये कार्ड पड़ते ही मैं घर की तरफ दौड़ा मेरे पांवो में जो वो कील चुभ रही थी अब दौड़ते समय उसका एहसास भी नहीं हो रहा था।

मैं घर जैसे ही पंहुचा पहले मैंने पापा का स्कूटर देखा वह वहा नहीं थी ….. मैं समझ गया की वह कहा गए होंगे। मैं बाइक एजेंसी वाले के पास दौड़ा पापा वहीँ खड़े थे। मैंने उनको गले से लगा लिया और जोर-जोर से रोने लगा और मैं बोला नहीं पापा मुझे नहीं चाहिए बाइक बस आप नए जुते ले लो और मुझे अब बहुत पैसे वाला बनना है लेकिन आपके तरीके से।

सीख

दोस्तों माता-पिता भगवान का दूसरा रूप है जो खुद कष्ट में रहते हैं लेकिन अपने बच्चों को सुख देने की हर मुमकिन कोशिश करते रहते हैं इसलिए इनका हमेशा सम्मान करो

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