एक सामान्य परिवार में जन्मे नानक देव जी बचपन से ही, परोपकार, त्याग, करूणा और प्रेम की मूर्ति स्वरूप थे। बालक नानक देव का पढ़ाई में मन न था। विद्यालय में अध्यापक से केवल एक ही प्रश्न करते कि मुझे ऐसा पाठ पढ़ाएं जिससे मै ईश्वर को और खुद को जान सकू। लेकिन इस प्रश्न का उत्तर अध्यापक के पास न होता।