गुरु नानक जयंती

एक सामान्य परिवार में जन्मे नानक देव जी  बचपन से ही, परोपकार, त्याग, करूणा और प्रेम की मूर्ति स्वरूप थे। बालक नानक देव का पढ़ाई में मन न था। विद्यालय में अध्यापक से केवल एक ही प्रश्न करते कि मुझे ऐसा पाठ पढ़ाएं जिससे मै ईश्वर को और खुद को जान सकू। लेकिन इस प्रश्न का उत्तर अध्यापक के पास न होता।

गुरु नानक जयंती

पिता के मन में हमेशा अपने पुत्र के भविष्य की चिंता बनी रहती थी। पता नहीं भविष्य में क्या करेगा यह सवाल एक शूल की तरह बना रहता। एक दिन पिता ने विचार किया बालक पढ़ता नहीं तो क्यों न खेतों के काम में लगा दूँ।

गुरु नानक जयंती

यह सोचकर पिता ने नानक देव को खेतों में अनाज की रक्षा के लिए भेज दिया। बालक नानक खेतों में बैठकर आसमान से खेतों की ओर आती चिड़ियों को देख रहे थे। चिड़िया खेत में दाना चुग रही है और नानक देव जी उन्हें बैठें निहार रहे है।

गुरु नानक जयंती

उन्हें लगा की यह चिड़िया भी उस ईश्वर की है और यह खेत भी उस ईश्वर का ही है तो मैं क्यों दाना चुगने से रोकू। धीरे-धीरे आसमान से सैकड़ों की तादाद में आई चिड़ियों ने खेत से दाना चुगना शुरू कर दिया लेकिन नानक देव जी उन्हें भगाने की बजाएं दाना चुगता देखकर मन ही मन आनंदित हो रहे थे। 

गुरु नानक जयंती

अब तो वह खड़े होकर खुद चिड़ियों से कहते- “राम दी चिड़िया, राम दा खेत। खाओ री चिड़िया भर-भर पेट।।”

गुरु नानक जयंती

आते-जाते लोगों ने जब यह देखा तो जाकर पिता को खबर की। पिता जी दौड़ते-दौड़ते खेत पर आए तो देखा बालक (नानक) हाथ उठा-उठा कर चिड़ियों को बुला रहा है और कह रहा है खाओ री चिड़िया भर – भर पेट। पिता ने सब चिड़ियों को भगाया तो बालक ने आसमान की ओर इशारा करते हुए कहा, “ पिता जी इन्हें मत भगाइए।

गुरु नानक जयंती

सब ऊपर वाले पर छोड़ दीजिये। उसको सबकी चिंता है हमारी भी और इन चिड़ियों की भी। इसके बाद पिता ने किसी दुकान पर काम सिखने के लिए भेज दिया तो वहां भी उनका उदार भाव ही रहा किसी से पैसे लेते तो बदले में समान ज्यादा तोल देते।

गुरु नानक जयंती

गरीब को देखते तो मुफ्त में सब समान बाट देते। अंत में हार कर पिता ने सोचा की विवाह कर दूँ गृहस्थी का भार आएगा तो दुनिया-दारी की समझ आ जाएगी। विवाह भी हुआ और दो पुत्र भी हो गए लेकिन नानक देव जी का उदार स्वाभाव न बदला और एक दिन घर छोड़ निकल पड़े।