सीख – पर्वत कहता शीश उठाकर कविता अर्थ सहित

सीख – पर्वत कहता शीश उठाकर कविता अर्थ सहित (  )

सीख कविता
Parvat Kehta Sheesh Utha Kavita By Sohanlal Dwivedi

पर्वत कहता शीश उठाकर,
तुम भी ऊँचे बन जाओ।
सागर कहता है लहराकर,
मन में गहराई लाओ।

समझ रहे हो क्या कहती हैं
उठ-उठ गिर-गिर तरल तरंग
भर लो भर लो अपने दिल में
मीठी-मीठी मृदुल उमंग! ।

पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो
कितना ही हो सिर पर भार,
नभ कहता है फैलो इतना
ढक लो तुम सारा संसार! ।
– सोहनलाल द्विवेदी (भारतीय कवि)

कविता का अर्थ

पंक्ति:     “पर्वत कहता शीश झुकाकर..” इस पंक्ति में पर्वत हमें क्या संदेश दे रहा है?
भावार्थ:-   पर्वत मनुष्य को शिक्षा देता है कि वह भी महान बने और पर्वत सी ऊँचाई प्राप्त करें।

पंक्ति:     “सागर कहता है लहराकर..” सागर से हमें क्या सीख मिलती है?
भावार्थः-   प्रस्तुत पंक्ति से हमें यश सीख मिलती है कि हमारे मन और विचारों में गहराई होनी चाहिए।

पंक्ति:     “समझ रहे हो क्या कहती हैं..” तरंगें हमें क्या सीख देती हैं?
भावार्थ:-   ह्रदय में उल्लास और उमंग की भावना के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं।

पंक्ति:     “पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो..” पृथ्वी का हमारे लिए क्या संदेश है?
भावार्थः-   कठिन परिस्थितियों में भी हम अपना धैर्य न छोड़ें।

पंक्ति:     “नभ कहता है फैलो इतना..” नभ से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
भावार्थः-    हमें संकीर्ण बातों को त्यागकर विचारों तथा आचरण को विस्तार देने की प्रेरणा देता है।

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